मौसम
मौसम
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मौसम,
बदलते रहते हैं,
कल पतझड़ थी, आज हरियाली है,
मैंने देखा है प्रकृति को,
बदलते हुए अपनी पहचान,
इस कारण होता नहीं उसमें,
गुरूर अपनी खूबसूरती का !
प्रकृति ने भी सीखा है, माना है,
दूसरों के लिए जीने को अपना पहला धर्म,
हम करते हैं प्रकृति की उलाहना -
कहकर सब पराये हैं,
उसने तो माना है,
हम सभी को अपना।
काश !
हम सब भी समझ पाते,
प्रकृति ने हमें बनाया है,
तो हमने भी प्रकृति को संवारा है,
अपने लिए यहाँ कोई नहीं जीता,
स्वार्थी होना -
प्रकृति में नहीं,
इंसान की !