मैने कब कहा....
मैने कब कहा....
मैने कब कहा तुम्हें
चांद तारे तोड़ लाओ
कब मांगी मैंने मेरे
हिस्से की भी खुशी
कब कहा मचल कर
कि मुझे ये वो चाहिए
बच्ची सी थी, जब
बचपन को मार कर
आई थी तुम्हारे आंगन में
अपने आप को पूरी
तरह से मिटा कर
मर मिटी तुम पर
तुम्हारे घर का एक एक
मोती पिरोया धागा बन कर
और तुमने कभी भी नहीं
जाना मेरे मन का हाल ।
मतलब बहुत भारी चीज है
एक बार निकल जाए तो
हर रिश्ता हल्का हो जाता है
कुछ ऐसी सी ही हो गई हूं मैं
इतनी हल्की की अब मेरे
वजूद पर मुझ ही को शक है।
अपना बचपन, जवानी सब लुटा
दिया तुम पर और अब
मुझमें कुछ नही है,
सिर्फ इंतजार है मौत का
या फिर तुम्हारा, क्योंकि
उमर के इस बचे हुए पड़ाव
पर जरूरत है तुम्हारी,
उम्र भर तुम्हारा हर हाल
में साथ दिया है मैंने और
अब मुझे ज़रूरत है तुम्हारी।