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Rashmi Prabha

Drama

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Rashmi Prabha

Drama

मैं याचक हूँ, माँगती रहूँगी

मैं याचक हूँ, माँगती रहूँगी

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बिना फूल,

अगरबत्ती,

चढ़ावे के,

मैं तुम्हें घर में ही

झाँक झाँक कर देखती रही,


टॉफी चाहिए हो,

कोई जादू देखना हो,

कह दिया तुमसे।


कुछ लोगों ने कहा,

यह पूजा करने का ढंग है भला !

ढंग ?


कहा,

क्या लालची की तरह

हर वक़्त माँगती हो,

दूसरे की लिखी पंक्तियों को

हिकारत से सुनाया,

बिन माँगे मोती ..."


 प्रभु,

मैंने देखा उनको

कीमती वस्त्र चढ़ाते,

कम उम्र थी मेरी

तब बड़े यत्न से

मैंने भी कुछ कुछ लिया,

लेकिन बड़ा अटपटा लगा।


तुम दोगे या मैं !

तुम तो जानते ही हो

कि एक सुबह से सोने तक

मैं निरंतर तुमसे

माँगती हूँ,


एक अलादीन का चिराग दे दो,

यह परिणाम सुंदर होना ही है,

लक्ष्मी स्वयं आ जायें मेरे पास,

बजरंगबली संजीवनी

रख दें मेरी मुट्ठी में,


सारे भगवान मेरे सिरहाने रखे

सपनों को पूरा कर दें 

कृष्ण एक बार माँ यशोदा की तरह

मुझे ब्रह्माण्ड दिखा दें,


मेरे आशीष में

तुम्हारे आशीष सी

अद्भुत ताकत हो।


प्रभु,

मैं याचक हूँ,

माँगती रहूँगी 

तुम दाता हो,

देते रहना।


तुमको दे सकूँ अपनी निष्ठा,

पुकारती रहूँ प्रतिपल,

यह सामर्थ्य देते रहना,

आते-जाते जब भी तुमको देखूँ,

झट से आशीष दे देना,

हर हाल में मेरे साथ रहना।


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