मैं, वो और बारिश
मैं, वो और बारिश
कहा मेरी महबूबा से मैंने
फिर ना मौसम सुहाना होगा,
ना भीगने का बहाना होगा।
धरती की प्यास है तुम्हें पाने को,
ये बारिश आई है हमें मिलाने को।
मान गई महबूबा मेरी और कहा
आ रही हूँ तेरे इश्क की गलियों में
कुछ अच्छा खासा इंतजाम कर
कुछ भी नहीं है तो कोई बात नहीं
जो दिल है उसे ही मेरे नाम कर।
क्योंकि जैसे आपकी दिल्लगी है
हम भी आपकी तलब रखते है
इश्क का शौक है तो हमसे मिलों
बाकी शौक आप बेमतलब रखते है।
बात सुनकर महबूबा का
मेरा ईमान भी कुछ यूँ डोला
जकड़ कर अपनी बांहों में
उसे मैंने कुछ ऐसा बोला
वैसे तो हम शरीफ है बड़े पर
इस बरसात ने बिगाड़ दिया है।
भीगे लिबास को देखकर तेरे
नशा तो मुझपे चढ़ा था पर,
बारिश की बूंदों ने मजा तो
मुझसे भी ज्यादा लिया है।
बरसात की बूंदों ने कहा हमसे
बिना मतलब की बरसात से
इन बूदों को जाया ना कर
ये इश्क कि बरसात है पगले,
हर किसी को भिगाया मत कर
बरसात की बूंदों ने ऐसा भिगाया
आवाज दिल से कुछ यूँ आया
एक तू हो और एक मैं रहूँ
फिर बारिश का आना जाना हो।
भीगते रहे हम इश्क में और
कमरे में कैद ये जमाना हो।