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Abhishek shukla

Drama Inspirational

4.9  

Abhishek shukla

Drama Inspirational

मैं वेदना की गहराई लिखता हूं

मैं वेदना की गहराई लिखता हूं

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शब्द मेरे हम इंसानों सा रोते हैं

मैं वेदना की गहराई लिखता हूं ,

उजाले में हर कोई साथ चलता है

अंधेरों में भी मैं परछाई लिखता हूं ,


अपने दुःख में मैं चुप हो जाता हूं

दूसरों के सुख में शहनाई लिखता हूं ,

मैं चुप होके भी कुछ कह जाता हूं

ऐसे एहसासो की करिश्माई लिखता हूं ,


जो न हो सबके हित और पक्ष में

ऐसी वृद्धि को मैं महंगाई लिखता हूं ,

उजालों तक ही हों जो सीमित कदम

इसको ही स्वार्थ पूर्ण हिताई लिखता हूं,


जहां पवित्र हो जाये आत्मा मिले शांति

उनको ही मैं सावन रमजायी लिखता हूं ,

जहां न हो भेदभाव न कोई ऊंच नीच

ऐसे व्यवहार को प्रभुताई लिखता हूं ,


दिल का सरल होना भी बेहद जरूरी है

सबके हृदयं में एक नरमाई लिखता हूं ,

बात जहां हो सम्मान के रक्षा की

उस स्थिति में मैं कड़ाई लिखता हूं ,


कठिन परिस्थितियों में सरल व्यवहार

ऐसे मनः दशा को चतुराई लिखता हूं ,

मैं इंसानों को भी पर दे दूं परिंदों सा

फ़िर आकाश कोअनंत ऊंचाई लिखता हूं ,


जहां से करें मानवता का अमृतपान हम

गुरुबान क़ुरान गीता व चौपाई लिखता हूं ,

मानव सेवा ही मेरा धर्म रहा सदा से ही

मैं तो रब ख़ुदा ईश रघुराई लिखता हूं


अच्छों के साथ अच्छा बुरों के साथ भी

देखा हरदम अच्छा है न बुराई लिखता हूं ,

जिस मचान पर ठिठुर गयी ख़ुद सर्दी भी

उस ठिठुरन को ही मैं रज़ाई लिखता हूं ,


जब स्वार्थ ही नींव हो जाये रिश्तों की

फ़िर इनसे मैं बेहतर तन्हाई लिखता हूं ,

जब भी निराश हो झगझोर दे मन को

एहसासों की ऐसे में गरमाई लिखता हूं ,


इस विस्तृत भू भाग की संरचना है अद्भुत

पहाड़ों की ऊंचाई कहीं राई लिखता हूं ,

एक ऐसा स्वरूप जिसमे है निःस्वार्थ प्रेम

मां माता अम्मी कहीं माई लिखता हूं


बेनक़ाब चेहरों पर रंग नहीं चढ़ते हैं

सादगी को भी अलग रंगाई लिखता हूं ,

अपने दर्द में मैं चुप चाप रो लेता हूं

फ़िर दूसरों के दर्द की दवाई लिखता हूं ,


जहां बांध दे दीवारे चलने से हमें

वहां कुछ मार्ग हवाई लिखता हूं ,

तूफ़ानों की भीअपनी एक कहानी होती है

हवा के रुख़ को पुरवाई लिखता हूं ,


कुछ विरोधाभास मन में जो छिपे हैं

मैं ऐसे विचारों की सफ़ाई लिखता हूं ,

खेल कभी कुछ एहसासों को तोड़ते है

मैं कुछ खेल तमाशाई लिखता हूं ,


जहां टूट जाये उम्मीद और हार जाएं हम

वहां मैं विश्वासों की भराई लिखता हूं ,

गिर जाने पर भी पेड़ों में शाख निकलती है

इसको ही क़ुदरत कीरहनुमाई लिखता हूं ,


इस प्रकृति का रहस्य अनन्त है यहाँ

कहीं नदियां पहाड़ कहीं खाई लिखता हूं ,

गलतियों को मैं अपनी कभी नहीं छुपाता

कभी हिसाब तो कभी भरपाई लिखता हूं...।


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