मैं उठूँगा
मैं उठूँगा
बटोर पृथ्वी की अथाह ऊर्जा को,
उठूंगा मैं धीरे - धीरे ज़मीन से।
ज़मीन पर गिरा आदमी हूँ,
उठने से उड़ने तक मैं ज़मीन से ही जुड़ा रहूँगा।
क्योंकि मैं जानता हूँ कि आसमां में आशियां कहां?
एक दिन तो ज़मीन पे आना ही है।
इसलिए मैं हरदम ज़मीन से ही जुड़ा रहता हूँ।
अपने लड़खड़ाते कदमों से नापते हुए दूरियाँ
पहुँच जाऊँगा मैं वहाँ जहाँ तमाम लोग
मेरी आवाज़ के सहारे ही अपनी जिंदगी जी रहे होंगे।
तब उन तक पहुँचने का मेरे अल्फ़ाज ही तो
मेरी बन्दगी तक मुझे पहुंचाएगी।
हाँ ! मैं उठूँगा एक दिन।।