मैं तिरंगा बोल रहा हूं
मैं तिरंगा बोल रहा हूं
गरल गले तक पहुँचा तो मुँह खोल रहा हूँ।
सुनो मैं तिरंगा बोल रहा हूँ।
भगत सम बलिदानियों ने ,
रंग दिया है मुझे बासंती।
महावीर, बुद्ध ,नानक, कबीर का,
मैंने धारण किया शुचिव्रत सादगी।
ऋषि हृदय की कामना
सर्वे भवंतु सुखिनः की हरियाली।
लहराता शिखर पर हवा का रुख मोड रहा हूँ।
सुनो मैं तिरंगा बोल रहा हूँ।
देखी है मैंने दासता की त्रासदी,
स्वतंत्रता हवन में लाखों शीशों की आहुति।
जीत कर हारे हमीं थे,बाँट कर,
दो टुकड़ों में देश की धरती।
वो अश्रु मुश्किल से सूखे हैं ,
तो आँखें खोल रहा हूँ।
सुनो मैं तिरंगा बोल रहा हूँ।
मुझे याद है वह दिन भी जब,
प्राचीर पर पहली बार मैं लहराया।
देशवासियों के नयन में,
स्वतंत्रता का दीप जगमगाया।
शहीदों के लिए थी आँखें नम,
उन्हें न भूलने की वचन दोहराया।
तुम भूल गए मैं वही वचन तोल रहा हूँ
सुनो मैं तिरंगा बोल रहा हूं।
देखा है मैंने लोकतंत्र का शैशव,
देशभक्तों की सच्चाई का वैभव।
बालपन का वो गिरना संभलना,
लोकतंत्र का संविधान में ढलना।
पुरानी बातें परत दर परत खोल रहा हूँ।
सुनो मैं तिरंगा बोल रहा हूं।
देखा है मैंने गंगा-यमुनी संस्कृति का एकाकार।
एकता के सूत्र में बंधा प्रत्येक परिवार।
देश की रक्षा में तत्पर करोड़ों,
जोड़ी निगाहों की निगहबानी।
हृदय में देश प्रेम था,
न छल-कपट न बेईमानी।
खो गए वो दिन कहां, सोच रहा हूँ।
सुनो मैं तिरंगा बोल रहा हूँ।
घिनौनी राजनीति चढ़ रही अटारी,
सत्तालोलुपो का देखता हूँ मदारी।
असहाय जनता की बेबसी लाचारी,
लूट खसोट हत्या और मारामारी।
हर दुखी हृदय में स्नेह रस घोल रहा हूँ।
सुनो मैं तिरंगा बोल रहा हूं।
मैं सरहदों के रखवाले को रोज
अपने दामन में भरकर व्यथित हूं।
मैं देशद्रोहियों का रंग देखकर,
शर्मसार , और लज्जित हूं।
भष्टाचार की बाढ़ में है मानवता तार तार
कामना अब हो सुदर्शन चक्रधारी अवतार।
कुपित शंकर कहें
मैं तीसरा नेत्र खोल रहा हूँ|
सुनो मैं तिरंगा बोल रहा हूँ।