मैं पृथ्वी हूं, बोल रहा हूं !
मैं पृथ्वी हूं, बोल रहा हूं !
जीवन में रस घोल रहा हूं,
सच-सच बानी बोल रहा हूं।
जीवन परतें खोल रहा हूं,
मैं पृथ्वी हूं बोल रहा हूं।।
चांद तलक तुम जा पहुंचे हो,
मंगल को तुम खंगाल रहे हो।
क्या उन पर जन जीवन संभव,
इसकी नब्ज़ टटोल रहे हो।।
नवग्रह हैं सूरज मंडल के,
बुध सूरज के निकट बहुत है।
वायु नहीं है उस ग्रह के संग,
जीवन उस पर बहुत विकट है।।
बिना पहन स्पेस सूट तुम,
कहीं नहीं जा सकते हो।
मुश्किल से दो चार मिनट रुक,
धरती तुम आ आते हो।।
चार सौ डिग्री तापमान से ,
शुक्र ग्रह बना हुआ सम्पन्नित।
घना वायुमंडल है जिसका,
ऊष्मा उसकी महिमामंडित।।
अब आई मंगल की बारी ,
सर्द ठिठुरती जहां की रातें।
हवा बहुत पतली है उनकी,
रहना वहां है मुश्किल बातें।।
बिना वायु के ग्रह हैं बृहस्पति
गैस जाएंट कहलाते हैं।
हाइड्रोजन, हीलियम और अमोनिया,
मीथेन गैस चकराते हैं।।
शनि और यूरनेस ग्रह भी तो,
गैस में डूबे उतरे हैं।
नहीं ठहर सकते क्षण भर को,
मानो कठिन ककहरे हैं।।
नील रंग के नेपच्यून हैं,
गिनती में सबसे अंतिम।
गैस और ठंढक चरम परम हैं,
जीवन यहां कपोल कल्पित।।
तुम सबको मैं पाल रहा हूं,
ऊर्जा अपनी तौल रहा हूं।
चन्द्र के संग संग डोल रहा हूं,
मैं पृथ्वी हूं बोल रहा हूं।।