मैं नहीं प्रवासी
मैं नहीं प्रवासी
मैं नहीं प्रवासी,मैं हूं भारतवासी
ये पूरा भारत , है मेरा भारत
चाहें हो गया, बनारस
या गुजरात, काशी
चलों छोड़ो तुम क्या समझोगे?
अपना दुःख दर्द
हम तो बस आते हैं
एक नया शहर बसाते हैं
फिर नये शहर से निकाले जाते हैं,
होली दिवाली छठ संक्रांति
सब कुछ इसी शहर में मनाते हैं
हम प्रवासी नहीं है
हम तो भारतवासी हैं!
पिछले साल का वह लाकडाउन
उसने किया हमारा जीवन बेचैन
छीने हमारे रोजगार छीना हमारा चैन
कुछ सड़क पर मरे, कुछ रेल के किनारे
जैसे तैसे घर पहुंचे हम सभी बेचारे
इस बार की परिस्थितियों में न कोई परिवर्तन है
इस बार भी वही हालात और वही अनदेखा परिवर्तन है
बस, रेल न देने वाले
खुद को नेता कहने वाले
क्या कहें इन नेताओं से
इन पत्थर के मसीहाओं से
मैं नहीं प्रवासी
मैं सिर्फ भारतवासी!