मैं मुकम्मल हो गई हूँ !
मैं मुकम्मल हो गई हूँ !
मैं इश्क़ के पानी में हल हो गई हूँ ,
अब तक अधूरी थी मुकम्मल हो गई हूँ।
पलट पलट कर आता है जो कल ,
मैं वो आने वाला कल हो गई हूँ।
बहुत देर से पाया है मैंने खुद को ,
मैं अपने सब्र का फल हो गई हूँ।
हुआ है मोहब्बत को इश्क़ जब से ,
उदासी तेरा आँचल मैं हो गई हूँ।
सुलझाने से और उलझती जा रही हूँ ,
मैं अपनी ज़ुल्फ़ का बल हो गई हूँ।
बरसता है जो बे-मौसम ही अक्सर ,
मैं उस बारिश में जल थल हो गई हूँ।
मेरी ख़्वाहिश है की मैं तुम हो जाऊं ,
मुझे लगता है की मैं पागल हो गई हूँ।