मैं मजदूर
मैं मजदूर
मैं श्रम में तन्मय रहने वाला मजदूर,
हमारा ही श्रम फैला है चारों तरफ।
बड़े बड़े भवन कल कारखाने सड़कें,
पुल नहर बांध स्कूल हमने ही बनाये है ।।
संसार में ऐसा कुछ भी नहीं जिसमें,
खुद को मेहनत कर गलाया न हो ।
पर हमारे पेट पालन के सिवा कोई कहो,
ऐसा कुछ है जो हमने कर पाया हो।।
मेहनत हम अथक करते रहते मगर,
सदा से वंचित ही रहते आए है ।
परिवार को अच्छी शिक्षा भोजन वस्त्र,
और स्वास्थ्य भी नहीं दे पाए है ।।
हमारी मजदूरी की न्यूनता सारे ही,
हमारे अरमानों को खा जाती है ।
मन की इच्छाएं मन में ही दफन हो,
हमारे साथ ही संसार से मिट जाती है ।।