मैं लिखता हूँ
मैं लिखता हूँ


मैं क्यों लिखता हूँ?
जब पूछता हूँ खुद से
इस प्रश्न को..
मैं खुद को मौन पाता हूँ
फिर निकलती है
अंतस से आवाज़
हाँ मैं लिखता हूँ
इसलिए क्योंकि मुझ से
नहीं देखा जाता है
किसानों का क्रंदन
नहीं देखा जाता है
अबलाओं पर हो
रहे अत्याचार
इसलिए अपनी
भावनाओं को..
करता हूँ कलमबद्ध
हाँ मैं लिखता हूँ
सदैव समाज की
सच्चाई
जग में हो रहे
अत्याचार
मैं लिखता हूँ
आज की सच्चाई
हाँ मैं लिखता हूँ
विधवा की वेदना
हाँ नहीं देखा जाता मुझ से
बुजुर्गों की सिसकियां
इसलिए मैं लिखता हूँ
वृद्ध की वेदना
हाँ मैं लिखता हूँ
बचपन की यादें
हाँ मैं लिखता हूँ
पेड़ की पीड़ा
क्योंकि मैं महसूस
कर पाता हूँ
कि खुद के
अस्तित्व खो देने
का दर्द क्या होता है
हाँ मैं लिखता हूँ।।