ज़ख्मों को वक्त भर चला
ज़ख्मों को वक्त भर चला
बहुत भटका यह दिल बेचारा
फिर भी न मिला कोई ठिकाना
रुलाया तो बहुत हैं इस वक्त ने हमें
न सोची थी कभी ऐसी ज़ख्म देकर
जैसे जैसे वक्त बीता मालूम हुआ हमें
इस वक्त से बढ़कर और कोई उमदा
ईलाज नहीं इस दिल का
देखते ही देखते हर घाव भरता चला
क्या करें सोचकर आखिर
यह दिल फिर संभलने चला।