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Mrs. Mangla Borkar

Tragedy Inspirational

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Mrs. Mangla Borkar

Tragedy Inspirational

महिला सशक्तिकरण

महिला सशक्तिकरण

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जितना घिसती हूं , उतना निखरती हूं।

परमेश्वर ने बनाया है मुझको , कुछ अलग ही मिट्टी से।।

जैसा सांचा मिलता है, उसी में ढल जाती हूं।

कभी मोम बनकर, मैं पिघलती हूं।।

तो कभी दिए की जोत, बनकर जलती हूं।

कर देती हूं रोशन ।।

उन राहों को, जो जि‍द में रहती हैं ।

खुद को अंधकार में रखने की।।

पत्थर बन जाती हूं कभी, कि बना दूं पारस ।

मैं किसी अपने को, रहती हूं खुद ठोकरों में पर।।

बना जाती हूं मंदि‍र कभी, सुनसान जंगलों में भी।

हूं मैं एक फूल सी, जिस बिन, ईश्वर की पूजा अधूरी,

हर घर की बगिया अधूरी ||

                     



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