वो और मैं
वो और मैं
हंसी मजाक तो उसकी आदत थी
वह इतनी खूबसूरत थी , इस कदर की आंखें देख नही सकती थी
सूरत थी मनमोहनी और सीरत से वह रानी थी
पत्नी बन वो मेरे जीवन में आई,
बन प्रेयसी मेरी रूह में जा समाई ।
साथ उसका इतना खूबसूरत था
की मुसीबतों को भी मैंने मुसीबत न जाना था ।
यूं तो मैं लड़ जाता मौत से भी
पर विभत्स खेल जिंदगी ने खेला था ।
वो चली गई उन्मत्त अदाएं अपनी समेटे
वो चली गई बिना मुड़कर देखें
तरंगित हंसी अपनी समेटे
रह गया मैं पीछे उसकी यादें समेटे
लगा जैसे वक्त ठहर गया
पर समय बिना परवाह आगे बढ़ता गया
पर जाते जाते भी वह भूली ना मेरा हाथ थामना
दे गयी मेरे हाथों में वो स्पर्श अपना ,
घनी अंधेरी रात में भी मेरी संवेदनाएं जीवित हो उठी ,
और फिर निराशा से एक सुंदर चीज में नवजीवन प्राप्त हुआ,
मैंने सोचा था मै रह गया अकेला
पर जाते जाते भी उसे मेरा ध्यान रहा
दे गयी मुझे वह पहचान अपना
नन्ही गुड़िया में था अहसास उसका
एहसास उसका मेरे साथ है
बेशक वो मेरे पास नहीं
पर वह हर पल हमारे साथ है ।