मैं क्या चाहता हूँ
मैं क्या चाहता हूँ
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यूँ आँखों से अपने परदे हटाते
तो जान लेते की मैं क्या चाहता हूँ
सपनों का आशियाँ गर तुम भी बनाते
तो जान लेते की मैं क्या चाहता हूँ
हिचकियाँ तेरी अगर बोल पातीं
राज़ गर वो कुछ खोल पातीं
नजदीकियां गर थोड़ी तुम भी बढ़ाते
तो जान लेते की मैं मैं क्या चाहता हूँ
नशा उतरता जो झूठी चाहतों का
तोह भला इकबार तुम सोच पाते
खिड़कियां गर फिर तुम खोल पाते
तो जान लेते की मैं क्या चाहता हूँ