चुप्पी
चुप्पी
कर्मों में कुशलता है
पर लगती हाथ विफलता है
चाहे जितने भी यत्न करूं
परिणाम वहीं निकलता है
मन में उठती हैं दुविधाएं
पर कुछ ना मैं कर पाता हूं
मैं बस चुप सा रह जाता हूं
मैं बस चुप सा रह जाता हूं
हूं कोसता नियति को अक्सर
हांथों में लकीरें खोजता हूं
मैं वर्तमान में बैठ के भी
भूतकाल की सोचता हूं
अवरुद्ध कंठ की पीड़ा से
मैं फिर कुछ ना कह पाता हूं
मैं बस चुप सा रह जाता हूं
मैं बस चुप सा रह जाता हूं
हृदय में हैं उन्माद बहौत
मस्तिष्क कोप में जलता है
हैं हस्त बंधे परिणामों से
और पांव तनिक ना चलता है
तिरस्कार के दागों से मैं
फिर ना खुदको धो पाता हूं
मैं बस चुप सा रह जाता हूं
मैं बस चुप सा रह जाता हूं
संघर्षों के मेले में
राहों में अकेले में
अथक मैं चलता जाता हूं
मैं अपनी बात बताता हूं
मैं बस चुप सा रह जाता हूं
मैं बस चुप सा रह जाता हूं।