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Anand Ranjan

Abstract

4.2  

Anand Ranjan

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चुप्पी

चुप्पी

2 mins
215


कर्मों में कुशलता है

पर लगती हाथ विफलता है

चाहे जितने भी यत्न करूं

परिणाम वहीं निकलता है

मन में उठती हैं दुविधाएं

पर कुछ ना मैं कर पाता हूं

मैं बस चुप सा रह जाता हूं

मैं बस चुप सा रह जाता हूं


हूं कोसता नियति को अक्सर

हांथों में लकीरें खोजता हूं

मैं वर्तमान में बैठ के भी

भूतकाल की सोचता हूं


अवरुद्ध कंठ की पीड़ा से

मैं फिर कुछ ना कह पाता हूं

मैं बस चुप सा रह जाता हूं

मैं बस चुप सा रह जाता हूं


हृदय में हैं उन्माद बहौत

मस्तिष्क कोप में जलता है

हैं हस्त बंधे परिणामों से

और पांव तनिक ना चलता है

तिरस्कार के दागों से मैं

फिर ना खुदको धो पाता हूं

मैं बस चुप सा रह जाता हूं

मैं बस चुप सा रह जाता हूं


संघर्षों के मेले में

राहों में अकेले में

अथक मैं चलता जाता हूं

मैं अपनी बात बताता हूं

मैं बस चुप सा रह जाता हूं

मैं बस चुप सा रह जाता हूं।


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