मैं कलमकार परिवर्तन का
मैं कलमकार परिवर्तन का
मैं कलमकार परिवर्तन का, उन्मुक्त लेखनी लाया हूँ ।
जो चले अँधेरों में निर्भय, मैं वही रोशनी लाया हूँ ।।
कुछ गीत कंठ में रीतिबद्ध, अधरों पर कुछ पीड़ाएँ हैं ।
कुछ मीरा के अतिमर्म गीत, कुछ गीतों में करुणाएँ हैं ।
इस धरती से उस अम्बर तक, मैं सेतु बनाने निकला हूँ,
मैं हृदय सिन्धु की लहरों को कागज पर लाने निकला हूँ !
स्वर रुँधा किन्तु अनुरागों से मैं भरी रागिनी लाया हूँ...।
मैं कलमकार परिवर्तन का.........।।
जो जले किन्तु फिर बुझे नहीं वह ज्योति जगाने का मन है।
जो बर्फ जमी अंतर्मन में, उसको पिघलाने का मन है !
कुछ सत्य सहजता के मोती, आँगन में बिखरे सिसक रहे ।
कुछ मानवता के फूल आग की, लपटों में भी महक रहे ।
जो तमस अमावस का हर ले वह धवल चाँदनी लाया हूँ..।
मैं कलमकार परिवर्तन का........।।
अधबहा नीर मैं नयनों का, मैं भावों का संवेदन हूँ,
जो समय शिला पर गढ़ा गया, मैं विधि का वह अभिलेखन हूँ !
मैं रहा सदा ही प्रासांगिक, प्रतिबिम्बों में प्रतिमानों में !
भाषण, आश्वासन, अभिवचनों, व्याख्यानों में आख्यानों में !
आधुनिक काव्य के सृजन हेतु, मैं नयी मापनी लाया हूँ...।
मैं कलमकार परिवर्तन का...........।