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Manish Chandola

Drama

5.0  

Manish Chandola

Drama

मैं कहाँ हूँ

मैं कहाँ हूँ

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आज आँखें खुली तो,

कुछ अलग सा दिखा।

पत्थर और रेत के,

अलावा कुछ ना दिखा।


आस-पास पेड़ व,

बगल में कंकाल पड़ा।

हुआ अचंम्भित और भयभीत की,

आखिर में कहाँ पड़ा ?


कि कोशिश हिलने की तो,

मायूस ही रहना पड़ा।

दुविधा और संकोच,

ने घेर लिया।


कि आखिर किसने,

मुझे जकड़ लिया ?

जब स्वीकारी मैंने हार ,

उसी समय महसूस हुई सुई की धार।


उत्सुकता की दूसरी लहर

मुझमें जाग गयी,

धार कलम के रूप में छा गई।


कलम थी जानी पहचानी,

फिर याद आयी पुरानी कहानी।

कागज की महक, कुर्सी से दर्द,

देर रात तक बैठने का वो मर्ज़।।


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