STORYMIRROR

Manish Chandola

Abstract

3  

Manish Chandola

Abstract

|| न जाने ||

|| न जाने ||

1 min
12K


कितनो को चलना सिखाया इस कंकाल ने,

कितने मौसम झेले इस खाल ने ,

कितने कंघे झेले इन मूंछों के बाल ने,

कितनो के आँसू पोछे कंधे के रुमाल ने,

आँखों को भिगोया कितनो की चाल ने,

कितना तरसाया एक मुट्ठी दाल ने,

फिर भी- कई बार सर झुकाया आकाल ने ,

क्योंकि मुझे बनाया है उस गोपाल ने!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract