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Manish Chandola

Abstract

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Manish Chandola

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न जाने

न जाने

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न जाने,

कितनो को चलना सिखाया इस कंकाल ने,

कितने मौसम झेले इस खाल ने ,

कितने आँसू पोछे कंधे के रुमाल ने,  

आँखों को भिगोया कितनो की चाल ने, 

कितना तरसाया एक मुट्ठी दाल ने, 

फिर भी- कई बार सर झुकाया आकाल ने , 

क्योंकि मुझे बनाया है उस गोपाल ने



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