शब्दों का वीर हूँ
शब्दों का वीर हूँ


कैसे करूँ बयाँ उस पीड़ा को,
जब काँप उठी रूह हर देखने वाले की,
क्रोध की आँधी ,
प्रलय कि चेष्ठा की,
उस अनंत क्षण की,
प्रकृति के विनाश के कारक,
धर्मान्ध, रक्त के भक्षक,
हे अन्धकार के पूरक,
समय तेरा हो चूका अब।
शब्दो का वीर हूँ,
बाणों का जकीरा हैं पूरा भरा,
नयनों में है वो दृश्य सजा,
भुजाओं में है तीर खिंचा,
मन मस्तिष्क मे तेरा अंत रचा !