मैं जुनून से जीती हूँ
मैं जुनून से जीती हूँ
मैं तितली हूँ अपने सफ़र को प्यार करने वाली
"मैं प्रेम हूँ" पनपती हूँ हर शय में
मैं पढ़ती हूँ सब कुछ
हर प्यारी चीज़ से चुनकर मुस्कान
महसूसती हूँ कतरा कतरा
पीती हूँ वसुधा के हर ज़र्रे में बसी
सुगंध को
मैं लिखती हूँ भय मुक्त, भ्रम मुक्त
कल्पनाओं की डोली में बैठे
कायनात के हर रंग को
जुनून से जीती हूँ सब कुछ पाने को
मचलती हूँ आफ़ताब की लौ सी
अपने आप में रची बसी
सब जानती हूँ, समझती हूँ,
हंसती हूँ, हंसाती हूँ,
चुराती हूँ दिल सबके हाँ मैं माहिर हूँ
रचती हूँ कविताएँ
शब्दों को जिस्म देती हूँ
अल्फ़ाज़ों में साँसे भरती हूँ
गज़ल को सँवारती हूँ अपने हुनर से
चाँदनी का नूर हूँ
रात की महफ़िल या अभिसारिका हूँ
संगीत की ताल पर झुमती हूँ
नाचती हूँ बारिश की बूंदों संग
खेलते गीले बालों की उलझी लटें सँवारते
कैनवास पर रंगों से सपने सजाती हूँ
छोड़ दिया नैरास्य में जीना शिकस्त नहीं खानी
मैं निर्भर नहीं भौतिक सुविधा की प्रकृति की गोद में
खेलते जो मिलता है बटोरती हूँ
मैं शिद्दत हूँ चोखी मनोवृत्ति और पारदर्शी चाहती हूँ
कभी बेतुकी, बातूनी अकडू भी हूँ
कभी मैखाने से बियर चुराती
तो कभी पान कपूरी गिलौरी खाती
मजेदार किरदार की मालकिन हूँ
ज़िंदगी मुझसे ज़िंदा है
"मैं स्त्री हूँ" उमा का प्रतिबिम्ब
ना किसी को गले लगाती हूँ
ना इश्क की बातें जानती हूँ
फिर भी रति का रुप हूँ,
प्रेम की परिभाषा हूँ
पर न...न ना
सिंगार की तिली सी जलती चिंगारी हूँ
वश नहीं होती
बस वश में करना जानती हूँ
लो, बन गए ना तुम मेरे
इस गिरह को अब तुम खोल पाओ तो जानूँ।।
