मैं जो तुम्हारे बचपन की भाषा थी
मैं जो तुम्हारे बचपन की भाषा थी


मैं जो तुम्हारे बचपन की भाषा थी
तुम्हारी भावनाओं की
शब्द रूपी आशा थी।
मैं जो तुम्हारे जीवन की आधार बनी
निश्चल प्रेम सी
दो किनारों को जोड़ती धारा बनी।
पल-पल मुझको
क्यों कोसा करते हो,
अपनी महानता में
क्यों अपमानित करते हो ?
ब्रिटिश हुकूमत ने
आज भी मुझको जकड़े रखा है,
किताबों में छिपाकर
मेरा इतिहास रखा है।
मैं साहित्य के पुजारियों के
मन की आवाज बनी,
ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध
हिन्द की क्रांतिकारी आवाज बनी।
ये जानकर भी लोग
क्यों अनजाने रह गए,
चौदह सितम्बर को सिमटे
मन के भाव रह गए।