मैं हूँ अकेला
मैं हूँ अकेला
मैं हूं अकेला,
कठिन है दुनिया का मेला,
फिर भी रहता प्रयासरत,
संभालता जीवन की डगर।
सोचता !
अगर मेरा भी हो साथी,
तो एक और एक ग्यारह की
कहावत सच्ची हो जाती।
हम दोनों रहते इकट्ठे,
एक दुसरे के सुख-दुख बांटते,
इकट्ठे कठिनाइयों का सामना करते,
हमारी ताकत दो की नहीं,
बल्कि ग्यारह के माफिक लगती।
एक दिमाग के विनस्पित,
दो दिमाग होते,
दोनों अपना-अपना दृष्टिकोण रखते,
फिर किसी निर्णय पे पहुँचते,
उसको लागू करते,
और अंत में चैन की नींद सोते,
आने वाले भविष्य के लिए आश्वस्त होते।
