मैं गाना गाऊंगी
मैं गाना गाऊंगी
अपने बातूनी और मिलनसार व्यवहार के कारण मेरी कक्षा में बहुत सी सहेलियां थी। मेरे साथ बैठने वाली मेरी दोनों सहेलियां सुमन और शीला वह तो मेरी लगभग हर बात मानती ही थी।
स्कूल का वह समय बहुत खूबसूरत समय था।
मंगलवार को हमारी हाउस मीटिंग होती थी तो आधी छुट्टी के बाद का समय हाउस मीटिंग का होता था। उसमें अक्सर हाउस की कोई प्रतियोगिता इत्यादि भी रख दी जाती थी अथवा खेलकूद के बारे में कोई जानकारी होती थी। अचानक से मेरा कद बहुत बड़ा हो गया था और लॉन्ग जंप और हाई जंप तो मेरे पसंदीदा खेल थे।
उनमें अक्सर मैं फर्स्ट या सेकंड आने से मैं अपने हाउस में भी काफी लोकप्रिय थी। हाउस मीटिंग में गाने के लिए हमेशा आरती या मंजू ही को बुलाया जाता था। मुझे गाना बिल्कुल नहीं आता था और ना ही मेरी आवाज कोई गाना गाने के लायक थी लेकिन फिर भी जब सब मंजू या आरती के गाने की तारीफ करते थे तो मेरे मन में भी आता था कि मेरी भी तारीफ होनी चाहिए और मैं भी गा सकती हूं।
पाठकगण आज भी मेरी आवाज औसत से बहुत भारी है। सुर ताल का मुझे कोई ज्ञान नहीं है। उस समय जब स्कूल के एनुअल डे फंक्शन पर गाने के लिए लड़कियों को चयन होना था
तो हमेशा के जैसे मंजू और आरती को तो लिया ही गया। बस उस समय मैं भी सपने देखने शुरू कर चुकी थी और खुद को बहुत बड़े गायक के रूप में भी देख रही थी। उनकी सिलेक्शन के बाद से ही मेरे मन में भी आ रहा था की अबकी मैं गाऊंगी। हालांकि उस दिन फाइनल चयन के लिए कोई भी अपनी प्रस्तुति दे सकता था लेकिन तब तो सबके सामने गाने के नाम से ही मेरा जी घबरा रहा था पर मैं अपने आप को बहुत बड़े गायक के रूप में देख रही थी।
जब स्कूल की छुट्टी का समय आया और हाउस मीटिंग खत्म हुई तो मैंने अपनी सहेली शीला को कहा कि मैडम को कह मधु भी गाएगी। हालांकि सुमन को थोड़ी सी हैरानी तो हुई लेकिन फिर भी उसने और शीला ने मैडम को कहा कि मधु भी गाएगी। टीचर ने कहा अब तो समय समाप्त हो चुका है कल किसी भी फ्री पीरियड में मेरे पास में स्टाफ रूम में आकर गाना सुना देना मैं तुम्हारा नाम भी एनुअल डे फंक्शन के लिए लिख लूंगी।
वाह, उस रोज पूरी रात मैं अपने आप को एक गायक के रूप में ही देखती रही। उस समय में टेलीविज़न इत्यादि नहीं होते थे। रेडियो पर सारे गाने सुनते हुए मैं अपनी आवाज ही महसूस कर रही थी।
दूसरे दिन अआधी छुट्टी खत्म होने के बाद मैंने मैडम को स्टाफ रूम में बैठे हुए देखा। फिर शीला सुमन और मैं सीधा मैडम के पास गए और कहा मैडम मेरा नाम भी एनुअल डे में गाने के लिए लिख दो। मैडम ने कहा मैने कभी भी किसी भी हाउस मीटिंग में या कहीं भी तुम्हारा गाना नहीं सुना एक बार गाकर तो सुनाओ।
पाठकगण वह पल ऐसा था कि मानो कोई आईएएस की सिलेक्शन में प्रश्न पूछ लिया गया हो। मन में उमड़ घुमड़ कर सारे लता मंगेशकर के गाने आने लगे और फिर हिंदी फिल्म "जिस देश में गंगा बहती है" का एक गाना है ओ बसंती पवन पागल, बेहद सुरीला और रागयुक्त है। मैंने जब वह गाना शुरू कर ओ बसंती ---पवन!!! पागल!!! तक तो सुमन मेरे सामने हंसकर मुझसे पिटना नहीं चाहती होगी इसलिए वह तो भाग गई। पीछे पीछे शीला भी भाग गई। मैं टीचर को गाना सुना रही थी और टीचर सुन रही थी। वैसे वह पल जरूर टीचर के लिए भी उस गाने को बिना हंसे सुनना मुश्किल रहा होगा उसने सुनकर कहा। अच्छा गाती हो लेकिन क्योंकि यह इंटर स्कूल की प्रतियोगिता है और तुमको अभी तक स्टेज पर गाने का अनुभव नहीं है इसलिए प्रतियोगिता के बीच में जब खाली समय होता है उसमें मैं तुम्हें स्टेज पर गाने के लिए बुला लूंगी।
पाठकगण स्कूल के एनुअल डे फंक्शन के समय सबके गाने सुनते हुए मेरा गायिका का भूत तो उतर चुका था और मुझे बहुत डर लग रहा था कहीं मैडम मुझे स्टेज पर ना बुला ले लेकिन उन्होंने मुझे स्टेज पर बुलाया भी नहीं। वैसे आवाज तो अभी भी मेरा साथ नहीं देती लेकिन गाने का शौक तो मुझे अब भी है।
