STORYMIRROR

Dhirendra Panchal

Romance Tragedy

4  

Dhirendra Panchal

Romance Tragedy

मैं बेरोजगार जो ठहरा

मैं बेरोजगार जो ठहरा

1 min
9

ख्वाहिशों पर था मेरे मुफलिसी का पहरा ।

वो प्यार मांगती थी मैं बेरोजगार जो ठहरा ।


मैं दर बदर का आदमी वो घर की लाडली 

डरता हूँ उसे देख तलबगार जो ठहरा ।


जब भी सोचा मैंने केवल सोचता रहा 

हर दफ़ा बस मैं ही गुनहगार क्यों ठहरा ।


हूँ मुस्तकीम सा मैं उसे कैसे बताया जाय 

उन भींगी सी पलकों का कुसूरवार जो ठहरा ।


मेरी क़ैफ़ियत पे यूँ ना मुस्कुराया जाय 

वो इश्क़ की भूखी थी मैं इतवार जो ठहरा ।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance