मैं आजकल हॉर्न नहीं बजाता
मैं आजकल हॉर्न नहीं बजाता
मैं आजकल हॉर्न नहीं बजाता,
नहीं-नहीं,
ऐसा नहीं कि मैं नोइज पोल्यूशन,
वगैरह को लेकर कंसरनर्ड हूँ,
हूँ, जब ज़ेहन में इतना कुछ गूँज रहा हो,
तो उसके सामने ये कुछ भी नहीं,
वजहें तो यूँ बहुत सी हैं,
दरअसल किसी बात की जल्दी नहीं है,
जहाँ से आ रहा हूँ वहाँ वापसी की,
जहाँ जा रहा हूँ वो मंज़िल नहीं,
और अगर मंज़िल हो भी तो,
वहाँ पहुँचने की जल्दबाज़ी मंज़ूर नहीं,
सफर की लुत्फ़बाज़ी ज्यादा ज़रूरी है
मुझे किसी को ये भी नहीं जताना कि,
देखो मैं तुमसे आगे निकलना चाहता हूँ,
हो सकता है वो यूँ भी मुझसे काफी आगे हो,
हो सकता है शायद काफी पीछे छूट गया हो,
ऐसे में किसी के ईगो को झुंझलाना क्यों,
किसी को ये एहसास भी नहीं दिलाना है,
कि वो धीमा दौड़ रहा है,
या उसका कण्ट्रोल ठीक नहीं,
या उसे दिशाभ्रम है,
क्यूँकि मैं समझता हूँ,
सबकी अपनी रफ्तार, दिशा, झटके वगैरह हैं,
आज नहीं तो कल,
ज़िंदगी और वक़्त जैसे 'गुरु',
उनको ये सब सीखा ही देंगे,
मेरी ज़रूरत नहीं।
बस, सबसे गहरी बात ये है कि,
मैं किसी के ख्यालों के समंदर में,
एक कश्ती उतारकर उसकी लहरों में,
हलचल नहीं करना चाहता,
जैसे एक एक बिजली कौंध कर,
दो बादलों को जुदा कर जाती है न,
तूफानी रात में,
क्या पता, कौन जाने वो आगे वाला भी,
किसी ऐसी ही ख्याल की डोर को थामे,
नज़्म को धागे-धागे बुनता चला जा रहा हो,
उसके ज़ेहन में कुछ किरदार,
किसी फ़साने के ज़रिये,
कागज पर उतर का बिखरने के लिए तैयार हों,
उसके लबों पर कुछ गीतों के मिसरे,
कुछ धुनों के जले अटके पड़े हों,
और अचानक 'बिजली' सा हॉर्न,
कौंधते हुए उस डिवाइन कनेक्शन को तोड़ दे,
ठीक वैसे ही जैसे इस वक़्त मैं,
भरी सड़क के बीचो बीच,
ट्रैफिक के समंदर में,
एक लहर पर सवार हूँ,
मज़े की बात, मेरे आगे-पीछे,
काफी सारे लोग यूँ ही,
धूनी रमाये चले जा रहे हैं,
शायद उनके ज़ेहन में भी कुछ गूँज हो,
शायद उनके ख्यालों में भी हलचल हो,
शायद उनको भी इस सफर का नशा हो ...
बस यूँ ही मैं हॉर्न नहीं बजाता..।।
