मायका
मायका
हर बार सोचा करती
आज लिख ही डालूँ खत,
कि याद तेरी मुझको
कितनी सताती है,
कि किस तरह से मेरे
खयालों में तुम आते हो,
बाबा की तनी भृकुटि से
किस तरह डराते हो,
अम्मा के अहसासों का
पुलिंदा बन जाते हो,
सोचती हूं आज लिख ही
डालूँ खत,
कि मेरी जिंदगी की पारी
तुम्हीं से शुरू होती है,
फिर यूँ हमसे बिछड़ने का
ये फलसफा क्या है,
क्यूँ बन गये हो तुम
इक बीता हुआ लम्हा
यादों के झरोखों में
फिर झाँकते ये नैना,
तुमसे ही पूछते हैं
अब कब तुम मिलोगे,
सब रिश्तों से मीठा
है सिर्फ तेरा ही जायका
आज लिख ही डालूँ तुझे खत
पता है जिसका 'मायका' !!
