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Gaytri Joshi

Drama Fantasy

0.3  

Gaytri Joshi

Drama Fantasy

क्या लिखूँ ?

क्या लिखूँ ?

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क्या लिखूँ ?

जिसे पढ़ सके कोई।


शब्द लिखूँ ?

जिनके जाल में,

केवल मैं जकड़ी रहती हूँ।


या लिखूँ भावना ?

जिसे समझने वाला नहीं कोई।


साथी लिखूँ ?

जिसकी महत्वाकांक्षाएँ,

मेरी भावनाओं से अहम है।


या लिखूँ बेटा ?

जिसकी भावनाएँ,

न समझ सकी मेरे प्रति।


हाँ, मैं बंधी हूँ,

आज तक पुत्र मोह के धागे से।


रिश्ता लिखूँ ?

तो संकीर्ण हो जायेगा।


रिश्ते लिखूँ ?

तो जिंदगी उलझ जायेगी।


चलो कुछ अहसास,

ही लिख देती हूँ।


कि आज तक,

उलझी रही मैं,

तेरे शब्दों के मकड़जाल में।


और करती रही समर्पण,

तेरे अहसासों को,

जिंदा रखने के लिए।


चलो,

लिख ही दिया,

तेरे अहसासों को,

अपने ख्वाबों की आहुति देकर !!


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