कुछ पल
कुछ पल
जी चाहता है
कुछ पल चुपके से
चुरा लूं जरा
अपने कुछ ख्वाबों को
उन पलों में
सजा लूं जरा
जिंदगी की रफ्तार से
हर रोज
कदम मिलाती हूं मैं
थक जाते हैं
जब कदम
उन कदमों को ही
रोक लेती हूं मैं
लेकिन मन अनवरत
दौड़ता ही रहता है
मन के सुकून के लिए
कुछ पलों को
चुरा लूं जरा
न कोई कभी कहेगा
बैठ जा दम भर जरा
छुपा के कुछ पल
मैं ही अपना फर्ज
निभा लूं जरा