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Sandeep Kumar

Tragedy

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Sandeep Kumar

Tragedy

माथे पर सिंदूर नहींएक तरह से

माथे पर सिंदूर नहींएक तरह से

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माथे पर सिंदूर नहीं

एक तरह से ताला है

उस ताले का चाभी

औरों के हाथों रहने वाला है।।


हुकुम आज से लाचारी में

तुमतो औरो का मानने वाला है

उसी के रूल रेगुलेशन पर

आज से चलने वाला है

माथे पर सिंदूर नहीं.......


आत्मा तुम्हारी है लेकिन

आज से मरने वाला है

इस आत्मा पर औरों का

अब दाल गलने वाला है

माथे पर सिंदूर नहीं........


पति नाम का एक ठप्पा

तुमको मिलने वाला है

उसके बदले में सारा

संसार बिकने वाला है

माथे पर सिंदूर नहीं..........


मौज मस्ती का सारा आलम

पल-पल लुटने वाला है

तेरे उपर औरों का 

सासन चलते वाला है

माथे पर सिंदूर नहीं..........


दो चार बातें दिन प्रतिदिन

व शाम सबेरे मिलने वाला है

मीठी बातें कभी कभी

कड़वी हरदम मिलने वाला है

माथे पर सिंदूर नहीं..........


अब अपना कुछ भी नहीं

शरीर भी दुसरे का होने वाला है

पापा की अनोखी परी

पति का समर भरने वाला है

माथे पर सिंदूर नहीं..........



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