माँ
माँ
साँवली सूरत, मन मोहिनी, मन ही मन मुस्कात है।
आगे-आगे नंदलाल दौड़े, पीछे मय्या भागत जात है ।।
कहत मय्या अब कान्ह से, गई मैं जो कर मना।
अब काहे दौडावे है, अंगना है माखन से सना ।।
छोटे-छोटे पाग से, जो कान्हा दौड़त जात है।
ज्यों-ज्यों कान्हा पाग बढ़ावे, मय्या त्यों घबरात है ।।
दौड़त-दौड़त अचानक ही, जब गिर पड़े गिरधारी।
मदन मोहन की उंगलियों से, छूट पड़ी वो बाँसुरी।।
साँस रोके मुँह खोले, मय्या ललन सम्भालत है।
गोद लेवे जब जसोदा, कान्हा बस हँसत जात है ।।
जो मय्या थी अब तक गुस्साई, वो ही सीने से लगात है।
माँ तो आख़िर माँ है, कान्हा यही तो समझात है ।।