माँ
माँ
ईश्वर को सराहा मैंने,
पूजा और चाहा मैंने !
हे माँ ! तेरी सूरत में,
ईश्वर को ही पाया मैंने !
ओस की एक बूँद को,
माँ तूने ही तराशा !
अपने ख़ून के कतरों से,
मुझमें भरी आशा !
मैं तो धृतराष्ट्र की तरह,
अँधा बन इस जग में आया !
संजय की आँखें बन माँ तूने,
मुझे इस ब्रह्माण्ड से अवगत कराया !
दुःख का कोई सैलाब जब भी आया,
मैंने हरदम तुझे अपने पास पाया !
जब भी ग़मगीन या उदास होता हूँ,
माँ तेरे काँधे पर सर रखकर रोता हूँ !
मेरी आँखें तो नम ही होती हैं,
पर माँ तू सिसकियाँ ले लेकर रोती है !
अपने ख़्वाबों को तिलाँजलि दे,
मेरे ख़्वाबों को परवान चढ़ाया !
मैं जब भी लड़खड़ाया या डगमगाया,
माँ तूने रास्त
ा दिखला भट्काव से बचाया !
मैं समझ नहीं पाया,
माँ तू काहे की बनी है !
मैं तुझसे भले ही रूठा,
पर तू ना कभी रूठी है !
पत्थर को मोम कर दे,
माँ तेरी दुआओं में वो असर है !
भले ही भँवर में हो कश्ती,
मुझे तूफ़ानों का भी नहीं रहता डर है !
माँ दुनिया से निराली तू,
शिक्षा दी जब माँ सरस्वती,
लक्ष्मी दी जब माँ लक्ष्मी,
चिंता हरी जब चिंतपूर्णी,
दुश्मनों के लिए माँ दुर्गा और काली तू,
ओस की बूँद को माँ,
मोती में ढाला तूने !
मूर्त रूप देकर,
पृथ्वी पर उतारा तूने !
अपने चाम की जूती पहनाकर भी,
तेरे एहसानों को उतार नहीं पाऊँगा !
ऐ माँ , तुझे कैसे नमन करूँ,
"शकुन" यह कभी जान नहीं पाऊँगा !!