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Shakuntla Agarwal

Abstract Inspirational Others

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Shakuntla Agarwal

Abstract Inspirational Others

"माँ"

"माँ"

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माँ मैं तेरा कर्ज़दार हूँ,

क्या कहूँ ? कितना गमगीन, उदास हूँ,

तेरी ममता का हिसाब जब लगाता हूँ,

अपने - आप को माँ गौण पाता हूँ,

तेरा हर - क्षण मुझ पे उधार है,

कैसे उतार पाऊँगा कर्ज़ ये सवाल है,

नौ माह गर्भ में पाला तूने,

मूर्त रूप में ढाला तूने,

जीव बन जब जग में आया,

पहला अक्षर तूने ही सिखाया,

आँखें बन साथ चलती रहीं,

ठोकर खाकर मैं गिर जाऊँ,

हर कदम पे डरती रही,

उँगली पकड़ तूने चलना सिखाया,

लोरी गा - गाकर मुझे सुलाया,

आँचल को ढाप, पेट भरती रहीं,

नज़र न लगें मुझे माँ,

माथे पे काला टीका करती रहीं,

खुद भूखी मेरा पेट भरती रहीं,

मैं तो एक ज़र्रा था मैं,

फ़लक का सितारा बनाया तूने,

माँ तेरी खूबियों का कितना बखान करूँ,

दिल की कशिश, अविरल धारा बन बहती है,

तेरे सज़दे में कलम झुकती हैं,

सूरज सी अनवृत्त माँ चमकती हैं,

तेरी रोशनी से ही रोशन जहाँ हैं,

तेरे क़दमों में ही चारों धाम हैं,

रज तेरे चरणों की जो मिलती रहें,

मेरी बिगड़ी क़िस्मत भी संवरती रहें,

इस दिल का तू अरमान हैं,

होंठ काँप रहें, आँख नम है

"शकुन" बस तू  मेरा अभिमान हैं,

माँ मैं तेरा कर्ज़दार हूँ,

क्या कहूँ ? कितना गमगीन, उदास हूँ।।


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