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Palak Inde

Tragedy

4.9  

Palak Inde

Tragedy

माँ

माँ

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363


वो प्यार मुझे नहीं मिला

जो मेरे हिस्से में था

मेरी कहानी कोई और ही पढ़ गया

जो लिखा मेरे किस्से में था

वो सारी ममता तेरी

बस उसी आँचल से लिपट गई

मेरी किस्मत में बंदिशें लिखीं

मेरी दुनिया वहीं सिमट गई

काश, मेरी जगह, 

तूने उसे जन्म दिया होता

जिस तरह तुम और वो खुद चाहती

उसका पालन पोषण किया होता

ना मैं तुम्हारे बीच आती

ना अपनी आवाज़ उठाती

ना हमारे झगड़े होते

ना मैं और तुम, इस तरह रोते

मुझे माफ़ करदो माँ,

मेरी हर शैतानी के लिए

काश मुझे भी तुझसे शाबाशी मिलती

मेरी हर कामयाबी के लिए

ये बातें मैं कब से कहना चाहती थी

अब समझ आया, तू उसे इतना क्यों चाहती थी

इसलिए, कि शायद तूने उसे संभाला था

तेरी बेटी भी वैसी ही हो...

शायद...तूने ये ख्वाब पाला था

गलती, न तेरी थी न उसकी थी

सारी गलती मेरी थी

कि मेरे वजूद से पहले ही

वो बेटी तेरी थी

काश तू मेरा हौंसला बढ़ाती

मेरी गलतियों पर डाँटती

वो तेरी बेवजह डाँट

बहुत रुलाती थी

यादों को छोड़ चुके वो दिन

जब तू मुझे सुलाती थी

कभी तेरे पास आने को जी चाहता

कभी तुझसे दूर भाग जाना चाहती थी

काश तूने एक बार तो सुना होता

कि मैं क्या चाहती थी

बस यही दुआ करूँगी

कि ऐसी गलती दोबारा न हो

बाकी जन्म, वो ही तेरी बेटी

और तू उसकी माँ हो

अच्छा होता, 

मैने तुझसे ये बातें कही ना होती

आज लिखते वक्त

मेरी पलकें भरी न होती...



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