पुत्र का पश्चाताप
पुत्र का पश्चाताप
कविता
पुत्र का पश्चाताप
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जिसने माना ही नहीं है कि तू पराया है।
तू उसी माँ को ओल्ड होम छोड़ा आया है।।
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अपनी थाली का दिया,तुझको निवाला जिसने।
गरीब रह के भी, सम्मान से पाला जिसने ।।
दुर्दिनों में भी न टूटी है ,संभाला जिसने ।
अपनी हिम्मत से हरेक,काम निकाला जिसने।।
जिसने हर हाल में,तुझको गले लगाया है ।
तू उसी माँ को ,ओल्ड होम छोड़ आया है ।।
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ईद दिवाली भी उस, घर में मना करती है ।
खुशियां बनकर जहां ,मंडप सी तना करती है।।
किन्तु उनके लिए माँ, खुद को फना करती है ।
वार कैसा भी हो माँ ,ढाल बना करती है ।।
तेरी खुशियों के लिए ,जिसने सब लुटाया है ।
तू उसी माँ को ,ओल्ड होम छोड़ आया है ।।
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तेरे दागों को भी ,आंचल में ढका है माँ ने ।
सच को भी तेरे लिए ,झूठ कहा है माँ ने ।।
तेरे हर राज को ,पर्दे में रखा है माँ ने ।
तेरे अपराध का ,हर दंड सहा है माँ ने ।।
धूप में सिर पे तेरे ,जिसने किया साया है।
तू उसी माँ को ,ओल्ड होम छोड़ आया है।।
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खुशी का रूप वो समझे, वही आशा समझे।
साथ मुस्कान से माँ ,दर्द की भाषा समझे ।।
भूख समझे वो प्यास ,समझे निराशा समझे।
समझना बच्चों को माँ, खेल तमाशा समझे।।
भूख और प्यास से ,जिसने तुझे बचाया है ।
तू उसी माँ को ,ओल्ड होम छोड़ आया है ।।
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जिसके कदमों के तले, स्वर्ग का नजारा है।
भंवर के बीच भी माँ ,पुख्ता एक किनारा है।।
अब तो तू है बड़ा ,तुझसे जहान हारा है ।
माँ के हाथों ने मगर, अब तलक संवारा है ।।
वो तेरी माँ है लहू ,उसका क्या पराया है ।
तू उसी माँ को ,ओल्ड होम छोड़ आया है ।।
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तू ये एहसान फरामोशी, कहाँ से लाया।
तरीका कर्ज चुकाने का, कैसा अपनाया।।
जब जरूरत है उसे तेरी, किसने बहकाया।
कैसे तू भूल गया है के, है उसका जाया ।।
जिसने सुख तेरे लिए, पानी सा बहाया है।
तू उसी माँ को ,ओल्ड होम छोड़ आया है ।।
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भुला के माँ को कामयाबी,को दुश्मन न बना।
तंग माँ के लिये तू अपना ये दामन न बना ।।
माँ से दूरी न बना ,खुद को यूँ निर्धन न बना ।
अपनी आंखों पे तरस खा इन्हें सावन न बना।।
जिसके आशीष ने ,काबिल तुझे बनाया है।
तू उसी माँ को ,ओल्ड होम छोड़ आया है।।
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सुन तेरी सारी कामयाबी का सफर माँ है ।
इमारतों की बुलंदी में भी, छप्पर माँ है ।।
तेरे सहन में खड़ा बूढा एक शजर माँ है ।
कर हिफाजत तेरी किस्मत में मौतबर माँ है।।
अरे पागले वो जिसने गोद में उठाया है।
तू उसी माँ को ,ओल्ड होम छोड़ आया है ।।
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खुश रहो बेटा ये आंखों ने कहा था कि नहीं।
छोडते वक्त क्या नजरों ने पढ़ा था कि नहीं।।
शांत सागर में एक तूफान उठा था कि नहीं।
"अनंत"दिल तेरा अंदर से हिला था कि नहीं ।।
ऐसे हालात में आशीष तूने पाया है ।
तू उसी माँ को ओल्ड होम छोड़ आया है ।।
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अख्तर अली शाह अनंत ""नीमच
9893788338