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Pradeep Sahare

Tragedy

4  

Pradeep Sahare

Tragedy

संदेह

संदेह

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241


नारी तेरे देह से,

जब खत्म हुआ मोह

तब किया हमने,

तुझ पर संदेह

संदेह आते ही,

हुआ बंदिशों का,

खेल शुरु

हम पीने लगे दारु

दारु के नशे में,

होते गये सराबोर

हँसते-खेलते जीवन को,

समझने लगे बोर

तेरी हँसी, तेरी गपशप,

तेरा मुस्कराना, तेरा चलना,

सब ले जाता, संदेह की ओर

संदेह जब गहराता गया,

जलाने लगे तेरी कोमल काया

खत्म हो गया, इन्सानी प्यार

मूक दर्शक लकड़ी,

बनी हथियार

हथियार की मार से,

रात भर तू अकड़ी

फिर भी जी नहीं भरा,

तो जंजीरों में जकड़ी

मासूम बच्चे,

तुझे देखकर रोये

तू उन्हें, देखकर रोई

हम जो चादर,

तानकर सोये

सुबह हम बेख़बर ,

छोड़ गये तेरा प्राण,

तेरा शरीर नश्वर

इन्सानी समाज को,

इसकी है, खबर

उन्हें है,

"पति - पत्नी"

रिश्ते का डर

हम जो तेरी,

चिता पर

संवेदना के चार आँसू रोए

फिर संदेह की दुनिया में खोए..

फिर संदेह की दुनिया में खोए



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