माँ तेरे बिना....
माँ तेरे बिना....
माना घर की सूनी दीवारें,
मूक दर्शक है मेरे बचपन की ,
माना इस घर का हर कोना,
कहता कहानी मेरे जवानी की,
हाँ, मानता हूँ यह आँगन गवाह है,
मेरे बढ़ते जीवन चक्र के प्रति पल का,
पर, माँ तेरे बिना,
कौन बताये मुझको मेरी बाल कथाएँ,
कौन समझाए मुझको दुनिया की गाथाएँ,
अब कौन बतलाए कैसे जीना
इन खामोश दीवारों संग,
किस कोने को अपना दर्द सुनाऊँ,
आँगन के किस कोने में छुप जाऊँ ,
जहाँ तू मुझे ढूंढ निकाले,
अपने हाथों से खिलाये हर निवाले,
कहाँ जाकर सो जाऊँ,
तू गोदी में लेकर मुझको लोरी सुनाएँ.....