हत्यारे: मेरे वजूद के
हत्यारे: मेरे वजूद के
कभी मेरे वजूद को कुचला जिसने,
आज मेरी उम्मीदों को कुचलने के मंसूबे बनाए हैं,
ये हत्यारे हैं मेरे, जो जानी पहचानी शक्लों में आए हैं।
मेरे पैदा होने से पहले, ये मुझसे खुन्नस रखते थे,
जो लडकी हो गई पैदा घर में तो हाथ ये बैठे मलते थे।
कुछ उम्र हुई थी ग्यारह बारह कि यौवन पर कुवारी के ये मरते थे,
बेटी सी ही तो उम्र थीं मेरी और ये हवस की आहे भरते थे।
आज अपने फैसले खुद ले सकती हूं इसलिए मैं बुरी हो गई,
अपने परायों के बीच की पहेली भी आज पूरी हो गई।
मेरे सपनों को कुचल कर क्या ही सुकून पाते हो ?
ये बतलाओ कि कैसे दर्पण में नज़रें मिलाते हैं।