कुछ दिलचस्प है
कुछ दिलचस्प है
आतंक भी है और ख़ौफ भी है
विचारों की बहती हुयी
बोझिल हवाओ में।
पूरा का पूरा वैचारिक परिवेश
सामाजिक ताना बाना
दुनिया का निजाम
झनझना रहा है
इन डरावनी हवाओं से।
हाँ कोई डरावना चेहरा
नहीं दिखता कहीं भी
हत्यारे अंतर्ध्यान हो गये हैं
और हवाओ में लाशें उड़ रही है
चिथड़े चिथड़े रक्त रंजित।
कितना सौम्य चेहरा है उनका
ज्ञान झरता है उनकी वाणी से
जिम्मेदारी का सिंहनाद करते हैं वो
यकीनन वो हत्यारे नहीं दिखते
और मुझे किसी कवि की
खूबसूरत पंक्तियाँ याद आ रही हैं
कि हत्यारे छीर सागर में
विचरण कर रहे हैं
और परिभाषाएं बदल रही हैं
धर्म की राजनीति की
उनके मुलमंतब्य से ठीक उलट
और गजब का आकर्षण है उनमें
राजधानियाँ खींची चली आती हैं
उनकी तरफ
और मन्त्र मुग्ध हो करती हैं
जनमत की कामनाओं की
संपूर्ति करती हुयी
कल्याण की घोषणाएं।
एक अदद आदमी का क्या है
उसे तो लगता है उसका सब खो गया है
कल्याण
गजब
आतंक