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मानसिंह मातासर

Tragedy

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मानसिंह मातासर

Tragedy

पति का बटुआ

पति का बटुआ

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पतिदेव का बटुआ प्यारा,

पत्नी को अच्छा लगता है।

जब तक पा नहीं लेती उसे,

जी उसका नहीं भरता है।


देखा-देखी कर दुनिया की,

खूब खरीददारी करती है।

आय-व्यय की चिंता नहीं,

अपनी ही मौज में रहती है।


फैशन में नित पड़कर वह,

कपड़ों का अंबार लगाती है।

पहनकर फिर बीच बाजार,

देख दूजों को इठलाती है।


तारीख बीस तो चली गई,

और तीस आने वाली है।

अब तो रुक जा भाग्यवान,

पति का बटुआ खाली है।


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