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Sheetal Jain

Drama

4.5  

Sheetal Jain

Drama

माँ सदृश

माँ सदृश

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मैं थी एक प्यारी सी लड़की  माँ की लाड़ली ,पापा की राजदुलारी

पापा थे मछुआरे मेरे 

 पास हम समुद्र के रहते 

नित नए जलीय जीव मुझे दिखाते 

 वो पल मुझे बहुत हसीन थे लगते

एक दिन हुआ अजीब ही ड्रामा 

  समुद्र तट पर मृत जीव ही मिलते 

सोचा हमने पता लगाए

  नाव लेकर समुद्र में जाए

होनी को कुछ ओर था मंजूर

  एक भँवर ने नाव को पलटाया 

याद कुछ और शेष नहीं 

   आँख खुली तो मैंने 

स्वयं को जलपरी पाया 

 

 आधी मानव आधी मछली 

सुंदर रुप समाया

  मैं तो थी बड़ी खुश

इतना बड़ा घर पाया 

  सब प्राणी दोस्त थे मेरे 

पहली बार इतना प्यार था पाया 

  संकट से बचाना इन्हें 

अब दायित्व था मेरा 

  जब भी कोई इन्हें सताता

तुरन्त सजा मुझसे पाता

  जल देव एक दिन वहाँ पधारे 

पूछ रहे थे मुझसे वो 

  क्या तुम्हें पृथ्वी पर जाना

अंतर्मन मेरा यह बोला

  अब तो मैं इनकी माँ सदृश 

छोड़ इन्हें कहीं न जाना॥


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