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Pushpa Srivastava

Tragedy

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Pushpa Srivastava

Tragedy

माँ की पसंद

माँ की पसंद

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सुबह-सुबह घर में आज

चहल पहल है लगी

सब तरफ है भागदौड़

फिर भी एक शांति सी है लगी।


ना कोई त्यौहार न ही उत्सव

कोई नहीं है अभी शुभ घड़ी

सब तरफ खामोशी छाई

आज है मां के श्राद्ध की घड़ी।


भिन्न है धूप बत्ती भिन्न अगरबत्ती

इनकी सुगंध मन में बसाऊं कैसे ?

प्यारी मां की लुभावनी महक को

मैं अपने पास यहां लाऊं कैसे ?


पूजन सामग्री में रखे हैं

मां के लिए नए वस्त्र जैसे,

उस सुंदर मनमोहक आंचल में

मां का स्पर्श मैं लाऊं कैसे ?


हरी तरकारी मीठे पकवान बने

हैं आज सब मां की पसंद के,

क्या करूँ जतन , तृप्त हो

मेरा मन मां को सच में खिला के।


मां की पसन्द की रखी है

सब चीजें आज यहां आंगन में,

बस मां का स्पर्श नहीं है आज

जो रहता है सदैव मेरे मन मे।


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