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Uma Bali

Abstract

4.8  

Uma Bali

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माँ की नज़र से

माँ की नज़र से

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गूँज गया आकाश 

भारत माँ के जयकारों से

डोल रही थी धरती

अमर रहे के नारों से


देशभक्ति का लोहा

जिसने मनवाया था

तिरंगे में लिपटा वो सपूत

अपने घर आया था


गर्व हो रहा था उसे

वो माँ थी एक शहीद की

न जाने कब से आस लगा

रखी थी उसकी दीद की


देश प्रेम का वो रस

जो अपने दूध में पिलाया था

"मैंने क़र्ज़ चुका दिया"

शायद वो कहने आया था


आँसू भी अाते आते 

कही रुक गए थे

मन के सारे भाव

अंदर ही अंदर

घुट गऐ थे


भीड़ में हर नज़र 

सवाल उठा रही थी

और वो बस उसको

एकटक निहार रही थी


फिर एक ग़ुबार 

उसके कानों से टकरा गया

उसको अपने अजनबीपन का

जैसे एहसास करा गया


घोषणाएँ हुई

अखबारो ने लिखा

और भीड़ छँट गई

ये तो क़िस्मत थी

नजाने कैसे कैसे बँट गई


अब सारी रात वो 

तारों को देखा करती है 

न जाने किस किस के तारे हैं

उसकी छाती जलती है


ममता को कहाँ छुपाए वो

जो दबने से न दबती है

शहीद की माँ है वो

सोती नहीं बस जगती है


उन सभी शहीदों को

अर्पित सब श्रद्धा सुमन

और मातृशक्ति को

शत शत नमन 

शत शत नमन !


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