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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

मां का इंतजार

मां का इंतजार

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मां बुनती है स्वेटर

बड़े जतन से

अक्सर ठंडियों में,

कभी अपनों के लिए

कभी रिश्तेदारों पड़ोसियों के लिए,

उसके बुने स्वेटर से पूरी ठंडियां

बेखौफ निकलती है,

पर वो नहीं लेती कुछ

बदले में बुनी स्वेटर के

क्योंकि अपनेपन का कोई मोल नहीं,

हालांकि उन शहरों में ठंडियां हल्के में ही कट जाती है

पर प्यार बस मां के हाथों का है 

ये सोच कर सब पहनते हैं,

और मां, उसकी ठंडियां

अपनों के इंतजार मे ही कटती है

दिन रात अपनों के लिए वो खुटती है,

पूरे साल अपनों के लिए 

चूड़े, दाले, भांग और घी 

जमा करती है,

और उसके अपने आते भी हैं

कुछ दिन गुजारने

मां के यहां अपनी थकान उतारने,

मां बस यही सोच खुश रहती है

चलो याद तो मैं आती हूं

इनको इसी बहाने........!

इस बरस कोरोंना महामारी मे

उसका अपना कोई गांव नहीं आया,

मां निहारती रही पूरा साल अपनों को

जोड़ती रही कलेवा, भारा पाथा

काटती रही एक एक दिन

अपनों के इंतजार में,

बुनती रही सपने हजारों अपने सिरहाने में,

अपनों की याद में घुट घुट कर 

मां आज चल बसी,

आज उसकी अर्थी निकली है

पर कोई नहीं था उसका यहां,

पड़ोसी के हाथों वो चिता में जली है,

इंतजार अपनों का

उसका पूरा ना हो सका 

अब बस याद अपनों की लेकर

वो इस दुनियां से रुखसत हुई,

छोड़ गई यादें ढेर सारी अपनों के लिए

कलेवा भारा पाथा संग

वो इस सुने घर में।



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