लो सुनो मेरी
लो सुनो मेरी
नही चाहिए कुछ
ज्यादा कभी भी
मिले संंग तुम्हारा
बस यही एक तमन्ना
नजर में चढे हो
के सुरूर जैैैसे
नजर से अलग कर
मुुुुझे गैर न गिनना।।
सिमट बाहों में आओ
लगा लो गले से अपने
घुुलो न लहू में हमारे
चाहता तुम्हारे रूह
की शीतल तपन में
हर अंंग मेरा तपना।।
तुुम सजाती दिन-रात मेरी
नही कुछ सुहाता
जितनी बातें तुम्हारी
बातों में बसे हो
लफ्ज बन गले में उतरना।।
इतनी अपनी और कहूँगा
करता हूूँ प्यार तुमको
तुमसे भी ज्यादा
प्रीत की रीत सजन
बस यही तो रही है
दूूर रह कर तुमसे
अभी कुछ हैऔर तङपना।।