लगाव व घाव
लगाव व घाव
लगाव और घाव इस कदर
घुल मिल गया की हर किसी
का लगाव घाव में खिल गया।
गम यह नहीं की जज्बातों के
कारण आंसूओं का बहना तेज हो गया,
बात इतनी सी है
की लगाव ही घाव में तब्दील हो गया।
चला था सुदर्शन सच्चे रिश्ते
निभाने, लेकिन लोग थे
मतलब के दिवाने और उनका
मतलबी स्वाभाव हो गया,
न बची ख्वाहिश कोई क्योंकी
लगाव का इंजाम ही घाव मैं खो गया।
आंखों और आंसूओं जैसा
रिश्ता था लगाव लेकिन पानी
की बूंद बन कर गर्म चुल्हे में तवाह,
हो गया लगाव ही इक दिन घाव हो गया।
बहुत गहरी चीज है लगाव
जिसने भी गहराई से देखा
सुदर्शन तो इस में थे घाव
वेशुमार, मिला न मरहम ऐसा
जो उनको भर गया, लगाव ही
गहरा घाव कर गया।
जब खोए थे किसी की यादों में
दो रूहों का लगाव हो गया
थोड़़ी करबट क्या बदली
तन मन फना हो गया, लगाव
ही जिंदगी का घाव हो गया।
दिखावे में सब अपने लगते हैं
वसा कर लगाव दर्द दूनिया
भर का देते हैं निभाने हों
रिश्ते तो दगे पर दगा देते हैं
आखिर लगाव ही जी भर
कर दगा कर गया, लगाव
ही एक दिन घाव कर गया।
खता न की किसी की
फिर भी खफा में रहे
किसी को खोने का
डर रहा दुसरा वफा
से डर गया, लगाव ही
एक दिन घाव कर गया।
रख लगाव प्रभु से सुदर्शन
घाव देगा तो भर भी देगा
दूनिया में कोई ऐसा प्राणी
कोई नहीं जो दगा करके भर
गया, लगाव ही एक दिन घाव
कर गया।