क्या विश्व कभी सुधरेगा?
क्या विश्व कभी सुधरेगा?
आज ऐसा वक्त आ गया,
पूरा विश्व दहल गया,
इंसान इंसान नहीं रह गया,
हर जगह महामारी का खौफ,
बच्चेे बच्चे पे तनाव,
फिर भी कहां है सुधार।
हर देश अपनी धुन में मस्त,
अपनी अपनी फिक्र,
क्या अमीर,
क्या गरीब,
कहां है सामुहिक प्रयत्न,
कहां है मानवता का जिक्र।
बस बातें होती,
सभाएंं होती,
हैडलाईनज बनती,
फिर अगली सभा की डेट फिक्स होती,
सब घुमते फिरतेे
अंत में लौट आते।
लेकिन जमीन पे कुुुछ नहीं दिखता,
मुद्दा येे
कब आएगा पैसा,
कब होगी मदद,
गरीब और मजलूमों की,
आज आपातकालीन स्थिति,
अगर तुरंत न हुआ कुछ,
तो लगता है,
खो देेेेंगे सबकुछ।
अभी भी समय,
हो जाओ सब इकठ्ठा,
युद्ध स्तर पर करो काम,
अमीर देश अपना ही न सोंचें,
साधनों को गरीब देशों मे भी करें विस्तृत,
जिससे महामारी सेे मिले निजात,
खुशहाली की,
फिर से हो शुरुआत।
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