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Arunima Bahadur

Tragedy

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Arunima Bahadur

Tragedy

क्या थी वो

क्या थी वो

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क्या थी वो,

एक मंदिर का घंटा,

बजाता गया जिसे हर कोई,

अपनी फरियाद सुनाने को।

वह भी बजती रही हर हाथो,

समर्पण अपना मान कर,

मुस्कुराती रही हर चोट पर,

शायद स्वीकार लिया था,

उसने घंटा बनना,

कर्तव्य की दहलीज पर मिट जाना,

मंदिर के द्वार की शोभा बनना,

खुद को मिटा देना,

इसी सोच से बंधी रही वो,

जंजीरों से छत पर,

मिटा दिया खुद को,

लोगो के लिए,

बना दिया खुद को अस्तित्व विहीन,

जो आता वो बजाता,

कुछ जोर से,सुनने को आवाजे,

ईश्वर तक पहुंचाने फरियादे,

बजती रही वो,

खुद में सिसकती रही,

लिखती रही अपनी करुण गाथाएं,

जो कोरे कागजों जैसी रह गई,

न किसी ने सुनी, न देखी , न समझी,

बस लाए सब,सजाने को एक मंदिर,

बनाने को एक शोभा,

पर क्या उस घंटे का,

न सोचा कभी,

क्या होगा घंटे का,

और क्या उसकी सिसकती आत्मा का,

यही तो रहा है नारी जीवन,

न जाने कितने युगों से,

अभी तक वह,

बज रही है एक घंटे की तरह,

बजाता कोई और है,

पर कहते है कि,

आवाज नारी की है

आवाज नारी की है।।



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